मांग में अंगारे

mang mein angrareyवेद प्रकाश शर्मा का दावा है की कोई भी पाठक इस पुस्तक
का अंतिम पृष्ठ पड़ने से पहले इस पहेली को नहीं सुलझा सकेगा
की इस कथानक का नाम मांग में अंगारे क्यों रखा गया है !

शीशे की अयोध्या

Sheeshe ki audhiyaएक औरत ने अपने पति की इच्छा पूरी करने के लिए धरती पर अयोध्या का निर्माण किया
लेकिन वो अयोध्या जुर्म की बुनियाद पर कड़ी थी । फिर, उसके बच्चो ने उसके एक-एक
जुर्म को उधेड़ना शुरू किया और उसकी आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए क्यूंकि
यही तोह चाहती थी वह ।

औरत एक पहेली

aurat ek paheliएक औरत थाने पहुंची । उसके हाथ में खून से सन छुरा था । पुलिस से कहा – “मैंने अपने बच्चे की हत्या कर दी है ।” पॉिलए उसके घर पहुंची । बच्चा जिन्दा था । फिर वह क्यों कह रही थी कि उसने बच्चे की हत्या कर दी है ?

नसीब मेरा दुशमन

naseeb mera dushmanजुड़वा बच्चे पैदा हुए । एक अरबपति सेठ क यंहा बड़ा हुआ । दूसरा झोपडी पट्टी में । जो झोपडी पट्टी में पला उसे लगता था नसीब मेरा दुश्मन है क्यूंकि सेठ उसे गोद लेता तो आज वो वंहा होता जन्हा उसका जुड़वाँ भाई है । क्या वह दुरुस्त सोचता था कंही ऐसा तोह नहीं था कि नसीब उसके जुड़वाँ भाई का दुश्मन था ! अंततः क्या साबित हुआ ?

सुलग उठा सिन्दूर

Sulag utha Sindoorऐसा नहीं की वह अपनी पत्नी से प्यार नहीं करता था, बहुत चाहता था वह उसे लेकिन उससे भी ज्यादा चाहता था दौलत को । उसी दौलत की खातिर उसने अपनी पत्नी तक को दांव पर लगा दिया और जब होश आया तोह बहुत दूर निकल चूका था । यह उपन्यास बताता है कि लालच इंसान को क्या से क्या बना देता है ।

दुल्हन मांगे दहेज़

Dulhan mange dahejजिस परिवार ने कभी दहेज़ मांगना तोह दूर, कभी दहेज़ की इच्छा तक नहीं की, उस पर दहेज़ क लिए अपनी बहु को मरने का आरोप लगा । न सिर्फ आरोप लगा बल्कि उनके ही घर से उनकी बहु की लाश भी मिली और साथ ही अपने मायके वालो को लिखा गया यह लेटर भी कि मेरे ससुराल वाले दहेज़ क भूखे है । क्या था राज ?

इंसाफ का सूरज

insaf ka suraj‘इंसाफ का सूरज’ उपाधि से अलंकृत वह इंस्पेक्टर अपराधियों को उनके
अंजाम तक पहुँचाने की ललक में खुद ही हत्यारा बन बैठा-फिर भी अंततः
उसने ‘इंसाफ का सूरज’ मंद ने पड़ने दिय।

विधवा का पति

vidhva ka patiएक आदमी की याददाश्त गुम हो गई । उसे यह पता लगाने के लिए निकलना पड़ा कि मैं कौन हूँ । फिर उसके सामने अपने तीन नाम आये वह इस उलझन में पड़ गया कि वास्तव में मैं कौन हूँ । वह उपन्यास जिस पर “अनाम” नाम की फ़िल्म बानी ।

आ बैल मुझे मार

क्या आपने ऐसे लोग देखे है जो इस कहावत को आक्षरषः चरितार्थ करते है । ऐसे ही किरदार की कहानी है ये जो जानबूझकर मुसीबतो को अपने गले में डालता था ।