देवकांता संतति भाग-१

devkanta santati 1-2यह वृहद कथानक चौदह भाग में है । इसमें विजय, विकास, और अलफांसे के पूर्व जनम की कथा लिखी गए है । इतना लम्बा कथानक है ये कि पूरे १ साल तक वेद प्रकाश इसे ही लिखते रहे थे और जब चौदहवें भाग में अंत लिखा तो पाठक तब भी प्यासे रहे गए । पड़ने वालो का कहना था की कथानक जल्दी खत्म हो गया ।

तिरंगा झुके नहीं

Tiranga jhuke nahiजमाखोरी, मिलावटखोरी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर यह उपन्यास करीब पच्चीस साल पहले लिखा गया था । ये समस्याएं आज भी हमारे समाज में ज्यों की त्यों है । कारण ये है कि देशभक्तो की वैसी टोली आज तक सामने ही नहीं आई जैसी की कल्पना इस उपन्यास में की गए थी ।

खून की धरती

एक ऐसी धरती की कहानी जो खून से इस कदर लबरेज थी कि एक भी कदम खून से बचकर नहीं रखा जा सकता था । कौन था उस नरसंहार का जिम्मेदार और विजय विकास ने उसे क्या सजा दी ?

शहीदो की चिता

देश के रणबांकुरों ने शहीद की चिता पर एक कसम खाई । एक ऐसे कसम जिसे पूरी करते-करते खुद उनका शहीद हो जाना लगभग तय था लेकिन देश को एक नया मुकाम दे गए वे जियाले ।

दौलत पर टपका खून

हत्या होती । हत्यारे का कोई सुराग नहीं मिलता । हरेक लाश के इर्द गिर्द पड़ी दौलत पर बस जरा सा खून टपका मिलता था और फिर यही खून ऐसा सुराग बन गया कि हत्यारा जेल में nazar आया ।